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किसी अपने को खोने का गम कैसे सहें, भगबद गीता का ये टिप्स और श्लोक आ सकते हैं काम (भाग 2 /श्लोक 23) का असलि मतलब ।

इससे पहले का जो article था उसमें हमने जाना था कि कर्म ही महान है। यानी की कोई अगर किसी काम को बार बार करने के बाद भी फेल होता है और ये सोचता है कि मुझसे अब नहीं होगा और मैं यह नहीं करना चाहता तो उसको कैसे सक्सेस मिल सकता है उसके बारे में हमने लिखा हुआ था। फिर चाहे वो पढ़ाई का एग्जाम हो या फिर कोई काम या बिजनेस ये रूल सभी चीजों पर लागू होता है।

और आज कल जो लेख है ये ये कहानी है इस कहानी को लिखते वक्त मेरे आँखों से आंसू निकल गए हैं। यानी की इस कहानी में कुछ ऐसा है जो किसी को भी एक टाइम के लिए हिला सकता है। क्योंकि ये कहानी उन लोगों के लिए है जो लोग कभी किसी अपनों को खोया है या फिर कोई ऐसा है जिससे वो बहुत ज्यादा प्यार करते हैं।

तो में आप लोगो से रिक्वेस्ट करता हूँ कि इस कहानी को लाश तक पढ़े क्योंकि इस कहानी में कुछ ऐसा है जो आपके लिए बहुत फायदेमंद है और आपका लाइफ चेंज कर सकता है ।

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 किसी अपने को खोने के बाद कैसे संभाले खुद को?

तो चलते हैं हमारे पंडित जी की कहानी की और सुनते है की वो कहानी कौन सी है...

सरकारी नौकरी से रिटायरमेंट के बाद हर कोई एक तरह से आजाद होता है लेकिन हमारे जो पंडित जी है उनके लाइफ में कुछ अलग ही हो गया था। जहाँ लोग रिटायरमेंट के बाद बो सबकुछ करते हैं जो वो करने से बचते आये थे जैसे सुबह शाम को घूमने जाना आसपास में दोस्त बनाना पौधों में पानी डालना जैसे वगैरा वगैरा। लेकिन हमारे पंडित जी का हाल कुछ उल्टा ही था क्योंकि उनके पास उनका गीताज्ञान का ब्लॉक था जिसके जरिये ना जाने वो कितने दोस्त बना लिए थे। उनके कंप्यूटर की एक छोटी सी खिड़की थी। जहाँ से वो सारी दुनिया को देख सकते थे बोल सकते थे और सुन भी सकते थे। लेकिन होता यह है कि कई बार ऐसा होता है की दूर की लोगों को समझना बहुत आसान होता है लेकिन पास के लोगों को समझना बिल्कुल भी आसान नहीं होता। क्योंकि दूर का कोई अगर हमे कुछ प्रॉब्लम बताते हैं तो हम उनको एक सलूशन एक एडवाइस दे सकते हैं। लेकिन हमारा पास में जो इंसान होता है उसको अगर कुछ परेशानी होता है तो उसके दुख में हम भी थोड़े से दुखी हो जाते हैं। और बात यही होता है की उसके दुख में भी हम शामिल हो जाते हैं। इसलिए पास के लोगों को समझना थोड़ा आसान नहीं होता है।

दरअसल बात यह है कि उनकी एक दोस्त है जिसका नाम रवि है। कल उनकी पत्नी ने उन को अलविदा कहकर दुनिया से छोड़ जा चुकी है। और उनकी कहानी कुछ इस तरह से है।

करीब करीब 40 से 50 साल पहले रवि और उसकी पत्नी नए नए शादी करके इस शहर में आए हुए थे। उनकी किसी से भी जान पहचान नहीं थी। दोनों ही एक बैंक में काम करते थे। जहाँ भी जाते थे दोनों साथ ही जाते थे यहाँ तक की। सब्जी खरीद ने वक़्त दोनों साथ ही रहते थे। दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे। कुछ गांव वाले उनका मजाक भी बनाते थे कि जहाँ भी जाते हैं एक साथ ही जाते हैं और कुछ लोग तो हैरान थे कि उनके बीच उतना प्यार कैसे हो सकता है |

हमारे जो पंडितजी है उनसे रवि की दोस्ती ऐसे ही नहीं हुई थी रवि का दोस्ती पहले पंडित जी की दोनों छोटे छोटे बेटे से हुई थी। इसका मतलब हो सकता है की रबी का बच्चों से बहुत प्यार करना हो सकता है। या फिर बच्चे उसको बहुत भी पसंद हो सकते हैं। ऐसे करके बच्चों से लेकर उनकी माँ बाप तक की उनकी दोस्ती हुई थी और यह दोस्ती धीरे धीरे बहुत गहरी हो भी गयी थी। रवि और उनकी पत्नी उन दोनों बच्चे को अपने बच्चे जैसे प्यार करते थे। क्योंकि इसका एक वजह भी था कि रबी और उसकी पत्नी की कोई बच्चा नहीं था।

ऊपर वाले के खेल भी बड़े निराले होते हैं। जो पति पत्नी एक दूसरे से इतना मोहब्बत करते हैं बच्चो से इतना प्यार कर सकते हैं उनके कोक में कभी एक औलाद नहीं दी उस ऊपर वाले ने | ना जाने ये दोनों कितने डॉक्टर को दिखाया बहुत सारे मेडिकल चेकअप भी किये कितने मंदिर में माथा टेका मन्नतें मांगी। कितने संत और महात्मा से मिले और आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों तक भी आजमा ली । और घर में बहुत सारे पूजा पाठ भी कर ली लेकिन फिर भी उनका कोई औलाद नहीं था। इतना सबकुछ होने के बाद भी रवि ने कभी अपनी वाइफ को नहीं कहा कि तुम कभी माँ नहीं बन सकती हो । उल्टा उसको यह समझता कि जो सच है उसको स्वीकार कर लेना चाहिए कि हमारा कोई औलाद नहीं है और इस वजह से रबी की वाइफ अपनी सारी ममता उन दोनों बच्चे पर लोटाती आई है जो कि। पंडित जी के दोनों बेटे थे।

समय के साथ साथ इन लोगों से दोस्ती भी एक परिवार के साथ बदल ही जाती है। एक दूसरे से हर सुख और दुख में हमेशा शामिल रहते थे। रवि और उसकी वाइफ एक दूसरे इतना प्यार करते थे और उतना परफेक्ट जोड़ी था कि उन दोनों को एक दूसरे के बिना कल्पना भी नहीं किया जा सकता था और आज वो हिजड़ा टूट गया है।

रबी का हाल कुछ ऐसा हो गया था कि जैसे देखकर पत्थर भी पिघल जाएगा। उसकी आँखों के आंसू देखकर तो मौत की देवता की भी आंखें भर आईं होंगी। रवि की वाइफ ने कभी मजाक में कहा हुआ होगा कि उसकी अंतिम दिन में उसको गंगा किनारे में जलाया जाए और उसकी अस्तिया को माँ गंगा की नदी के गोद में बहा दिया जाए। रवि अपनी पत्नी की इस बात को रखते हुए पंडित जी से उनकी वाइफ को हरिद्वार ले जाने की बात कहते हैं और इंतजाम करने की गुजारिस करते है।

आप हरिद्वार जाते वक्त पूरे रास्ते रबी जैसे बिल्कुल ही मौन थे और ऐसा लग रहा था कि मानो जैसे वो गम में डूब जाना चाहते हैं। नहीं रवि के उबरने की शक्ति बचा था और ना ही हिम्मत। उसका कुछ होश ही नहीं था। लोगो ने कब उससे जबरदस्ती अंतिम क्रिया की रस्में करवाएं और उन्होंने कब किसी के सहारे अपनी वाइफ को अंतिम विदाई देकर अग्नि के हवाले किया उसको पता ही नहीं चल रहा था। इधर रवि की आँखों के सामने सिर्फ और सिर्फ राग बचात था। इधर अंतिम क्रिया में आने वाले लोग बस जाने ही लगे थे और रवि एक जगह रहकर शोक के किनारे गहरे समुद्र में डूबे जा रहे थे। हमेशा लोगों को अच्छी सलाह देने वाले पंडित जी अपने दोस्तों कुछ कहना तो चाहते थे पर जब रबी के पास जाते हैं उनका ही गला सूख जाता है।

फिर पंडित जी सोचते है जैसे भी तो कहना ही पड़ेगा नहीं तो वह अपने दोस्त को इस गम में डूबे हुए नहीं दे सकते। और हिम्मत करके रबी के पास जाते हैं और श्रीमद्भागवत गीता का ये श्लोक सुनाते हैं।

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।

nainaṁ chhindanti śhastrāṇi nainaṁ dahati pāvakaḥ
na chainaṁ kledayantyāpo na śhoṣhayati mārutaḥ

ये श्रीमद्भगवद्गीताका दूसरे चैपटर का 23बा श्लोक हैं। और कहते हैं जानते हो रवि इसका अर्थ क्या है ये सुनकर रवि पंडित जी को पकड़ लेता है और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। फिर पंडित जी भी उसको देख कर रो पड़ते और इस लोक का मतलब समझाते है।

आत्मा को न औजार काट सकता है या न आग उसे जला सकती है और ना ही पानी उसको डुबो सकता है और ना ही हवा उसको सुखा सकती है। आत्मा तो अजर अमर है। ये श्रीमद्भागवत की दूसरे चैपटर का 23 बा श्लोक है | उसी किताब में है जो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमुख से अमृत बनकर बरसी थी। और जिसकी ज्ञान गंगा में भीगने वाला इंसान मुक्त पा लेता है। यह सुनकर रवि ने पंडित जी से पूछा फिर इस श्लोक का यहाँ क्या मतलब है और क्या संबंध है इसका |फिर पंडित जी बोलते हैं। तुम शरीर और आत्मा का फर्क भूल रहे हो। अपनी प्रिय पत्नी के शोक में तुम इस सच को अनदेखा कर रहे हो की उसका सिर्फ शरीर नष्ट हुआ है उसे चलाने वाले आत्मा नहीं क्योंकि आत्मा तो अजर अमर है एक शरीर से दूसरे शरीर की यात्रा करती है एक जन्म से दूसरे जन्म पर फेरा लगाती है। जो मिट गया है वो बस मिट्टी थी। और जो जीवन सकती थी वो अभी भी है। किसी और मिट्टी में जान फूंकने चली गई। उसके लिए शोक करना बेकार है। ये उस आत्मा का अपमान भी हो सकता है। उसे सम्मान के साथ विदा करना यही समझदारी है।

यही बात हमें भगवान श्री कृष्णा अर्जुन को समझाने के बहाने समझा रहे है । हमारे मोह माया के बंधन हमें सच्चे लगते हैं लेकिन सच सिर्फ एक है और ये वो ही सच है जिससे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया है आत्मा अजर और अमर है इसलिए शरीर की प्रति प्रेम रखना ब्यर्थ है तुम्हारी पत्नी की इस शरीर का साथ यहाँ तक था इस सच को स्वीकार करो और उसकी मृत्यु को उसी भाव से शिकार करो।

यानी की हमारा रिश्ता जिसके साथ भी होता है। माँ बाप बेटा बेटी पति पत्नी भाई और बहन जो भी है हमारा भाप सिर्फ और सिर्फ शरीर से जुड़ा है। आत्मा ये सब से आजाद है। आत्मा उस अभिनेता और अभिनेत्री की तरह है जो कि अपना किरदार खत्म होने के बाद किसी और किरदार को निभाने के लिए। चले जाते है। ठीक ऐसे ही हमारे सरीर से जुड़ा आत्मा भी इसी तरह से अपने किरदार खत्म होने के बाद कहीं और चले जाते। जो अब तक जिया उसकी अच्छी यादों को समेट लो वही जीवन की कमाई है उसी के सहारे आगे का जीवन काटना है उस आत्मा को प्रणाम करो। और खुद को शरीर के मुँह से आजाद करो।

पंडित जी की इस बातों ने रबी का मन को थोड़ा सा हिम्मत दिया जैसे डूबते हुए इंसान को किसी मजबूत हाथ ने पकड़ लिया है। और रवि ने तय किया कि अपनी मरी हुयी पत्नी की यादों को सम्मान देते हुए अब उसी के मृतु की सच्चाई को भी सम्मान देगा और नमन किया। और हमारे पंडित जी की मन को भी थोड़ा सा सुकून मिला और उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता का और भगवान श्रीकृष्ण जी को नमस्कार किया।

और इसी तरह से यह कहानी अंत यही होता है...

और आगे की कहानी ज्ञान अगले लेख में तब तक के लिए bye and Takecare ....


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