गुस्से से कैसे बचने के लिए एक कहानी और उपदेश श्री क्रिष्ण जी के मुख से .....
इससे पहेले का जो लेख था उसमे हमने जाना था कैसे किसी अपने को खोने का दर्द से बाहर आयेंगे और आज का लेख में हम जानने बाले है गुस्से के बारे में अगर आपको बहुत गुस्सा आता है और आप उसको control नहीं कर पाते हो या हो सकता है कि आप कहीं पर काम करते हैं और आप के नीचे काम करनेवालों से कुछ गलतियाँ हो जाती है और अब परेशान हो जाती है। या फिर ये प्रॉब्लम घर पर भी हो सकता है तो इस समय आपको क्या करना है इस कहानी से हम जाननेवाले है |
क्यूंकि गुस्से आनेपर इंसान की माती यानी की बुद्धि मरी जाती है मतलब वो धीमे हो जाती है। इससे याददाश्त भी नष्ट हो जाती है और याददाश्त नष्ट हो जाने से इंसान की बुद्धि नष्ट हो जाती है। और बुद्धि का नष्ट हो जाने पर इंसान खुद का ही नाश कर बैठता है।
तो इस लेख से हम यही जानने वाले है सीधी भाषा में। भगबान श्री कृष्ण जी का इसके बारे में क्या कहेना है श्रीमद भगबद गीता ज्ञान एक कहानी की मदत से नए तरीके से |
तो यह कहानी शुरू होती है उस वक्त से जब लगभग सभी देशों कोरोना की चपेट में आ चुका था। साल 2020 में तो जो हमारा पंडित जी है उन्होंने जब से ब्लॉक लिखना शुरू किया है उनके लाइफ में बहुत सारे बदलाव आए हैं। पंडित जी को बचपन से गीता ज्ञान का शौक तो था ही लेकिन जब से लोगों को गीता के जरिए पंडितजी उनके परेशानियों का हल बताने लगे हैं उनकी जिंदगी में बहुत सारे अच्छे अच्छे बदलाव आए हैं और बहुत कुछ सीखने को मिला है।
लेकिन कहते हैं ना घर की मुर्गी दाल के बराबर होती है। जैसे एक सर्जन को बीमारियों तो वो खुद अपना ऑपरेशन नहीं कर सकता। किसी को अपना बाल भी कटवा ना तो वो खुद नहीं काट सकता। ठीक उसी तरह पंडित जी का हाल भी था। वह अपने बेटों को यह सब सीखाना तो चाहते थे लेकिन उनके बेटे को उनकी सोच पुराने जमाने के लग रहे थे।
तो बात उस दौर की है जब सारे देश करुणा के कहर से थर थर कांप रहा था। चारों ओर सन्नाटा छा चुका था लोग कहीं जा नहीं पा रहे थे जहाँ के लोग वहीं पे रुके थे। क्या अमीर और क्या गरीब हर इंसान कोरोना के खौफ से डर डर के जी रहा था ऐसा भयानक नजारा लोगों ने शायद पहली बार ही देखा था। चारों और मौत की आवाजें गूंजती हुई सुनाई देती थी। जो बीमार थे उन्हें बिमारी न तबाह किया और जो बच गए थे उनकी रोज़ी रोटी पर बन आई थी। उनकी रोजगार खतरे में आ गए। लोगों को घरों में सिमट कर काम करना पड़ा और लगभग हर इंसान का मानसिक स्वास्थ्य किसी न किसी हद तक खराब होने ही वाला था।
ठीक इसी तरह पंडित जी का घर का हाल भी था। उनकी पत्नी हर वक्त परिसान रहती थी कि कही उनके परिवार में किसी को कोई बिमारी न हो जाए। बेचारी हमेशा एक खौफ के साये में रहती। पंडित जी के लाख समझाने पर भी उनका डरना खत्म नहीं होता। हर वक्त अपने दोनों बच्चों की चिंता में रहती जो दूर दूसरे शहर में luckdown फंस गए थे। और बेचारी करती भी क्या भले ही बच्चे बड़े हो चूके हैं लेकिन उसके लिए तो बच्चे ही है।
किसी तरह कोशिश करने के बाद पंडित जी का छोटा बेटा अभी अपने शहर में वापस आ गया। उसके ऑफिस में घर से काम करने की सुविधा भी दे रखी थी। इस बात से पंडित जी की पत्नी को थोड़ा सा सुकून तो मिला कि कम से कम एक तो बेटा आँखों के सामने है। उसके आराम और खाने पीने का जिम्मा उसकी माँ ने ऐसे उठाया जैसे मानव घर में कोई बेटा नहीं मेहमान ठहरा हो।
इधर पंडित जी के ब्लॉग में लोगों के सवाल दर्दभरी कहानियों से भरा रहने लगा। कोई किसी अपने का चले जाने का गम में खुद को और अपने परिवार को संभालने की सलाह मांगता है तो कोई दिमाग की शांति के उपाय तलाशता हुआ है उनके ब्लॉग में दस्तक देता है। कुल मिलाकर हर तरफ बस एक अजीब सी उदासी का माहौल था जो पहले कभी नहीं हुआ था। इधर पंडितजी नोटिस कर रहे थे कि उनका जो बेटा अभी है वो बहुत गुस्से से बात करने लगा है। उसको कुछ पूछो तो चिड़चिड़ा हो कर जवाब देता है। अपने बेडरूम से बाहर ही नहीं निकलता है और कभी खाता है तो कभी खाता भी नहीं। जब देखो फ़ोन पे बातें करता रहता है। और वो भी चिल्ला चिल्ला के जब घरवालों ने पूछा तो आपने मामलों से दूर रहने को बोलता है। पंडित जी और उनकी वाइफ ये बातें अपने बड़े बेटे को कहते हैं तो वो भी कहता है आजकल इस महामारी के वजह से हर कोई डिप्रेशन में है और हो सकता है कि काम की कोई परेशानी हो या ऑफिस का कोई प्रेशर। अभी के टाइम में नौकरी बचाने के लिए अपने आप को सबसे बेहतर साबित करना पड़ रहा है। वो अपने आप ठीक हो जायेगा उसको रहने दो।
ये बातें सुनकर दोनों चुप हो जाते हैं और कुछ नहीं बोलते। लेकिन 1 दिन तो हद ही हो गया। अंदर से चिल्लाते हुए कोई चीज़ को पटकने की आवाज आई। पंडित जी अंदर जाना तो चाहते थे पर दरवाजा अंदर से लॉक था। ऐसे ही 1 दिन रात को अपने बेटे अभी की रोने की आवाज उनको सुनाई दिया फिर पंडितजी खुद को और नहीं रोक पाते है और अपने बेटे के पास चले जाते हैं और उसके कंधे में हाथ रखते हुए बोलते हैं।
क्या हुआ बेटा तु ऐसा क्यों रो रहा है पंडित जी की यह बात सुनकर अभी और भी फूट फूटकर रोने लगा। फिर पंडित जी अभी को सीने से लगाकर बोले क्या हुआ है तुम्हें मुझे बताओ फिर अभी ने बोला। पापा मेरे गुस्से में सब खराब कर दिया पता नहीं मुझे क्या हो गया है जब भी मेरे नीचे काम करनेवालों से छोटी सी गलती हो जाती है मुझसे बर्दाश्त नहीं होता है। और मेरे गुस्से के मारे होश नहीं रहता है और मैं भूल जाता हूँ कि हम सब इंसान हैं। सब बुरे दौर से गुजर रहे हैं। ऐसे में अगर किसी ने जाने अनजाने से गलतियाँ कर भी दी तो उसे नजर अंदाज कर देना चाहिए पर मैं ऐसा नहीं कर पाता हूँ आप ही बताओ पापा मैं क्या करूँ पंडित जी ने बड़े प्यार से अपने बेटे के सिर पर हाथ रखते हुए कहा अगर तुम सुनना चाहो तो मैं तुमको वो बताना चाहूंगा जो भगवान श्री क्रिश्न्स ने अर्जुन से कहा था और जिसे मानने भर से तुम्हारी समस्या। अपने आप दूर हो जाएगी। तो सुनना चाहोगे फिर अभि ने हाँ बोला और पंडित जी ने भागवत गीता का ये स्लोक सुनाया।
क्रोधाद्भवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृतिविभ्रम: ।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ।
ये श्रीमद्भागवत गीता के दूसरे अध्याय का 63 बा स्लोक है। जिसका अर्थ है की गुस्से से इंसान की माती यानी की बुद्धि मारी जाती है। मतलब बो धीमे हो जाते हैं। इससे याददाश्त भी नष्ट हो जाती है और याददाश्त नष्ट हो जाने से इंसान की बुद्धि नष्ट हो जाती। और बुद्धि का नाश हो जाने से होनेपर इंसान खुद का ही नाश कर बैठता है।
इस लुक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को ये समझा रहे हैं कि कोई भी युद्ध सिर्फ ताकत से नहीं जीती जा सकती। आपको अपनी इंद्रियों को भी साथ में नियंत्रण रखना होता है। वरना आपको हारने के लिए बाहरी दुश्मन की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी। अब खुद के ही दुश्मन से हार जाएंगे। गुस्सा यानी की क्रोध किसी भी इंसान का एक ऐसा ही दुश्मन है जो गुस्सा आते ही सबसे पहले अच्छे बुरे का विवेक खो देता है। सामने कौन हैं उनके सम्मान की प्रबाह किए बिना बातें बोलने लग जाता है। या फिर कोई एक ऐसा कदम उठा लेता है जिससे पछतावे की सिवाय कुछ और नहीं मिलता हस्सा एक चीज़ है जो बड़े से बड़े बीरो का बल को भी खत्म कर देता है और बड़े से बड़े ज्ञानियों की ज्ञान को भी खत्म कर देता है और जीवन भर की कमाई और सम्मान को एक पल में चकनाचूर कर देता है।
इसलिए सबसे पहले आपको अपने गुस्से को जीतना सीखना होगा। तभी जिंदगी की बाकी लड़ाई जीत पाओगे यह भगवान श्रीकृष्ण जी कहते हैं। फिर अभी ने पूछा इस बात को मैं यहाँ कैसे अप्लाई करूँ फिर पंडित जी बोलते हैं ठीक ऐसे ही जैसे आप अपने बाकी काम को करते हो। अपने दिमाग को शांत रखना है और यह मैसेज देना है कि चाहे कुछ भी हो जाए किसी भी सिचुएशन हो अपने आपा नहीं खोना है। दूसरों की जगह पर खुद को रखकर देखने की आदत बनाना है और अगर किसी से कुछ ऐसा गलती भी हो जाए जैसे हमारा नुकसान भी हुआ हो तब भी पूरी कोशिश करनी है कि गुस्से की वजह शांति से और दर्जे के साथ उस इंसान को इसका अहसास कराया जाए।
पंडित जी की प्यार भरी बातें और गीता के अंत की ठंडी फुहार ने अभी कि मन को एकदम शांत कर दिया। अभी यह जानता है कि 1 दिन में खुद को नहीं बदल पाएगा लेकिन हर दिन कोशिश करें तो 1 दिन जरूर खुद को बदल लेगा। बदलाव के सुरुआती में अभि ने अपने माँ और पापा से माफी मांगी और प्रॉमिस किया कि वो आपसे ऐसा बिल्कुल भी नहीं करेगा और पंडित जी ने फिर से एक बार भगवान श्रीकृष्ण और श्भरीमद भगबद गीता को प्रणाम किया और हर बार उन्हें सही रास्ता दिखाने की प्रार्थना की।
और इसी तरह ये कहानी और ज्ञान यही अंत होता है आगे की कहानी हम जानेंगे अगले लेख में नयी कहानी और नयी ज्ञान के साथ तब तक के लिए bye and takecare ....
क्रोध से जन्मी हुई सभी दुःख ही से उत्पन्न होते हैं। अतः जो मनुष्य न तो क्रोध में प्रवृत्त होता है, और न ही उसके लिए क्रोध से ही उत्पन्न हुए दुःख से डरता है, वह सुखी हो जाता है।
"गुस्से स-कैसे-बचें-एक-महत्बपूर्ण-अध्ययन-How-Avoid-Getting-Angry-Detailed-Study-श्रीमद-भगबदगीता-ज्ञान-भाग-2-श्लोक-63-का-मतलब-एक-कहानी-की-मदत-से"



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